शिक्षा बोर्ड में खुदीराम बोस के बलिदान दिवस पर किया गया पौधारोपण
शिक्षा बोर्ड में खुदीराम बोस के बलिदान दिवस पर किया गया पौधारोपण
भिवानी, 11 अगस्त (सच की ध्वनि)- हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड में आज बलिदान दिवस पर शहीद युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस की याद में बोर्ड परिसर के प्रांगण मे पौधारोपण किया गया तथा दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धाजंलि अर्पित की गई। कोविड-19 महामारी की रोकथाम हेतु निर्धारित नियमों की अनुपालना करते हुए यह कार्यक्रम किया गया। शहीद खुदीराम बोस के संक्षिप्त जीवन के विराट स्वरूप का वर्णन करते हुए बोर्ड अध्यक्ष डॉ० जगबीर सिंह एवं सचिव राजीव प्रसाद, ह.प्र.से ने कहा कि आज ही के दिन युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस भारतीय स्वाधीनता के लिए मात्र 18 वर्ष 8 मास 11 दिन की आयु में वर्ष 1908 में मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी पर चढ़ गये, वे सबसे कम उम्र के वीर एवं क्रांतिकारी देशभक्त माने जाते हैं।
उन्होंने आगे बताया कि खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर, 1889 को पश्चिमी बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गाँव में हुआ था। बालक खुदीराम बोस के मन में देश को आजाद करवाने की ऐसी लगन लगी की नौंवी कक्षा के बाद पढ़ाई छोडकर कर स्वदेशी आन्दोलन मे कूद पड़े। उन्होंने बताया कि अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए खुदीराम बोस ने हिन्दुस्तान पर अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प में पहला बम फेंका और मात्र 18 वर्ष 8 मास 11 दिन की आयु मे हाथ में भगवद्-गीता लेकर हॅँसते-हँसते फाँसी के फन्दे पर चढकर इतिहास रच दिया।
उन्होंने आगे बताया कि मुजफ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फाँसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फाँसी के तख्ते की ओर बढ़ा था। शहादत के बाद खुशीराम इतने लोकप्रिय हो गए थे कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे थे, नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था। उनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और उनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। उनके सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई जिन्हें बंगाल के लोकगायक आज भी गाते हैं।