यमुनानगर

प्रयोग ही कला की संजीवनी है बशर्ते कि उसके स्वरूप से कोई छेड़छाड़ न हो: बुधराम

-अम्बाला छावनी में 10 दिवसीय  हरियाणवी लोकनृत्य कार्यशाला का हुआ समापन
अम्बाला, 18 नवम्बर(सच की ध्वनि): हरियाणा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बचाए रखने के लिए उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र पटियाला द्वारा आयोजित 10 दिवसीय लोकनृत्य कार्यशाला का समापन 17 नवम्बर, 2020 को अम्बाला छावनी की गौरीशंकर धर्मशाला में किया गया। यह जानकारी देते हुए वरिष्ठ अनुभवी प्रशिक्षक बुधराम मट्टू ने बताया कि उत्सव-पर्व एवं त्योहारों को लेकर हरियाणा में वर्ष भर सांस्कृतिक आयोजन चलते रहते हैं। ऐसे में समय के अनुसार यदि गीत-संगीत-नृत्यों में प्रयोग न किए जाएं तो कला बूढ़ी हो जाएगी क्योंकि प्रयोग ही कला की संजीवनी है। बशर्ते कि उसके स्वरूप से कोई छेड़छाड़ अथवा बदलाव न हो। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रयोगों से आज की युवा पीढ़ी को पश्चिमी सभ्यता के कुप्रभाप से बचाए रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि हरियाणवी लोक संस्कृति पर शोध तो हुए परन्तु उसका बोध नहीं हुआ, इसलिए दामण और चुन्दडी का प्रयोग सरकारी आयोजनों तक सीमित होकर रह गया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हरियाणवी लोक संस्कृति विरासत को जीवित बनाए रखने के पहरेदारी करने की आवश्यकता है। इस अवसर पर शिव कुमार अग्रवाल ने बच्चों को अपने गुरूजनों का सम्मान करने के लिए प्रेरित किया तथा विशेष रूप से उपस्थित रंगकर्मी जगदीश शर्मा व नरेश शर्मा ने बच्चों से अपने अनुभव सांझे किए। इस कार्यशाला में संगीतकार दिनेश लोहरिया, ऋषिमोहन बग्गन व शोभा ने मीनू, निधि, ईशा, सिमरन, आरूषी, कोमल, सरिता, दीपिका, नीरज, हर्षिता, नेहा, पायल, रीतिका, वंशिका व हरमन प्रीत कौर के नृत्यों को अपनी सुरीली आवाज देकर चार चांद लगाए।

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