चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कृषि विज्ञान केन्द्र, दामला, यमुनानगर के द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023Ó कार्यक्रम का आयोजन
चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कृषि विज्ञान केन्द्र, दामला, यमुनानगर के द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023Ó कार्यक्रम का आयोजन मुस्तफाबाद गांव में किया गया। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं सलाहकार डॉ. एन. के. गोयल ने जानकारी देते हुए कहा कि आंकड़ो के अनुसार दुनिया भर में अरबों लोग कुपोषण से पीडि़त हैं और भोजन की कमी का सामना कर रहे हैं। भुखमरी और कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में बाजरा या पोषक-अनाज उपयोगी साबित हो सकता है।
केन्द्र के समन्वयक डॉ. संदीप रावल ने मोटे अनाज के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा की बाजरा कम अवधि की फसल हैं, इस प्रकार कम समय अवधि के भीतर एक चक्र पूरा करने से, किसान भाई जल्दी या देर से बुवाई की स्थिति में पर्यावरणीय तनाव की स्थिति की संभावना से बच सकते हैं। इसके अलावा, बाजरा की जल उपयोग दक्षता चावल और गेंहू की तुलना में अधिक है और भविष्य में दुनिया के एक बड़े हिस्से में पानी की कमी को पूरा करने के लिए बाजरा को मुख्य फसल के रूप में चुना जाएगा।
डॉ. आशमा खान (गृह वैज्ञानिक) ने जानकारी देते हुए बताया कि बाजरा को पोषक-अनाज के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि धान और गेहूं जैसी पारंपरिक अनाज की फसलों की तुलना में उनका अधिक पोषक मूल्य होता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर, लिपिड, पॉलीफेनोल्स, फाइटोकेमिकल्स, एंटीऑक्सिडेंट और महत्वपूर्ण स्थूल और सूक्ष्म पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। बाजरे में ग्लूटेन न होने के कारण, बाजरा ग्लूटेन एलर्जी और सीलिएक रोग से पीडि़त लोगों के लिए फायदेमंद है। बाजरे का सेवन हृदय रोग के जोखिम को कम करता है, मधुमेह से बचाता है, पाचन तंत्र में सुधार करता है, कैंसर के खतरे को कम करता है, श्वसन स्वास्थ्य में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है और मांसपेशियों और तंत्रिका तंत्र में सुधार करता है। खाद्य सुरक्षा, पोषण सुरक्षा, रोगों से सुरक्षा तथा आर्थिक सुरक्षा को देखते हुए बाजरा टिकाऊ तथा मानव जीवन के अच्छे स्वास्थ्य के लिए एक पहल है।
डॉ. अजीत सिंह ने जानकारी देते हुए कहा कि बढ़ा हुआ तापमान कार्बन डाइऑक्साइड, ग्रीन हाउस गैसों का स्तर और प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी, वर्षा में अनिश्चितता इत्यादी फसलों पर बुरा प्रभाव डालते है लेकिन बाजरा जलवायु के अनुकूल फसल हैं जो एक साथ जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम कर सकती हैं और बदली हुई और व्यापक कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हो सकती हैं।