गोपाष्टमी गायों की रक्षा, संवर्धन व उनकी सेवा के संकल्प का पर्व है: गुज्जर
यमुनानगर, 22 नवम्बर(सच की ध्वनि): गोपाष्टमी पर्व यानि गायों की रक्षा, संवर्धन एवं उनकी सेवा के संकल्प का ऐसा महापर्व जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि को पोषण प्रदान करने वाली गाय माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु गाय-बछड़ों का पूजन किया जाता है। यह शब्द शिक्षा मंत्री कंवरपाल ने कहे। कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है, इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गौचारण लीला आरम्भ की थी।
हरियाणा सरकार में कैबिनेट शिक्षा वन व पर्यटन मंत्री कंवरपाल ने बताया कि हिन्दू धर्म में गौमाता को पवित्र व पूजनीय माना जाता है, गौमाता को माता का दर्जा दिया गया है। इस दिन बछड़े सहित गाय का पूजन करने का विधान है, प्रात: काल ही गौओं और उनके बछडों को भी स्नान कराया जाता है। गौ माता के अंगों में मेहंदी, रोली हल्दी आदि के थापे लगाए जाते हैं। गायों को खूबसूरती के साथ सजाया जाता है। धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ माता की पूजा व आरती की जाती है।
उन्होंने गौमाता के बारे में बताया कि ऐसा माना जाता है कि गाय के गोबर में अल्फा, बीटा और गामा किरणों को अवशोषित करने की क्षमता होती है, इसमें सूर्य केतु नाड़ी होती है, यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती है। गाय का दूध हल्का पीला होता है यह पीलापन कैरोटीन तत्व के कारण होता है जिससे बहुत सी बीमारियों से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि गौमाता की बनावट और गाय में पाए जाने वाले तत्वों के प्रभाव से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है, जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध होता है और मानसिक शांति मिलती है। गौमाता में देवी देवताओं का वास माना जाता है। उन्होंने बताया कि भाजपा की हरियाणा सरकार गऊशालाओं की स्थिति को सुधारने के लिए उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है व गौहत्या पर प्रतिबंध लगाया गया है। उन्होंने बताया कि उनके घर खाना खाने से पहले सर्वप्रथम गौग्रास निकाला जाता है।