महाशिवरात्रि के पर्व को आदिबद्री में बड़ी धूमधाम से मनाया गया
सच की ध्वनि(ब्यूरो) बिलासपुर, 11 मार्च ( )-महाशिवरात्रि के पर्व को आदिबद्री में बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस पवन अवसर पर एसडीएम बिलासपुर जसपाल सिंह गिल ने आदिबद्री नारायण मंदिर व श्री केदारनाथ मंदिर में पूजा अर्चना की। इस मौके पर सुरेन्द्र बनकट, प्रवीण अग्रवाल, चौकी इंचार्ज ओम प्रकाश, श्राईन बोर्ड से पंकज अग्रवाल, आईसीए शमशाद अली उपस्थित थे।
एसडीएम जसपाल सिंह गिल ने बताया कि सभी श्रद्धालुओं ने लाईनों में लगकर दर्शन किए। किसी भी श्रद्धालु को कोई भी परेशानी नहीं हुई। उन्होंने कहा कि सभी तरह पुख्ता प्रबंध किए गए है। उन्होंने पुलिस कर्मचारियों को भी दिशा-निर्देश दिए व कहा कि डयूटी में पर मुस्तेद रहे।
श्री केदारनाथ मन्दिर के पुजारी राजेश शास्त्री ने बताया कि हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि पर्व की विशेष मान्यताएं है। शिवरात्रि की रात्रि शिव और माता पार्वती के मिलन की रात के रूप में मनाया जाता है। साथ ही साथ इस दिन 64 शिवलिंग के रूप में भगवान भोले संसार में प्रकट हुए थे। शिव योग में किए जाने वाले धर्म-कर्म, मांगलिक अनुष्ठान बहुत ही फलदायी होते हैं। इस योग के किये गए शुभकर्मों का फल अक्षुण्ण रहता है। शिवरात्रि के दिन भूलकर भी माता-पिता, गुरूजनों, पत्नी, पराई स्त्री, बड़े-बुजुर्गों या पूर्वजों का अपमान नहीं करना चाहिए। उनके लिए गलती से भी मुख से अपशब्द नहीं निकालने चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन पार्वती से शंकर का विवाह संपन्न हुआ था। शास्त्रों के अनुसार यह दिन भगवान शिव और देवी शक्ति के मिलन का दिन होता है। यह त्यौहार हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण त्यौहार है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था, यही कारण है कि हिंदू धर्म में रात के विवाह मुहूर्त बेहद उत्तम माने जाते हैं, इस दिन भक्त जो मांगते उन्हें शिवजी जरूर देते हैं।
उन्होंने बताया कि रुद्राक्ष को भी शिव का श्रृंगार तत्व माना जाता है। इसका उपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में किया जाता है। रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आँखों के जलबिंदु आँसू से हुई है, इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इस दिन शिवलिंग की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो जातक शिवरात्रि पर विधि-विधान से व्रत रखते हैं उनके सभी कष्टों को भगवान शिव हर लेते है, जैसा कि ज्ञात हो भोलेनाथ ने पूर्व में भी समुद्र मंथन से उत्पन्न हुआ विष का प्याला पी लिया था। साथ ही साथ इस दिन कुंवारी कन्याएं मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए भी व्रत रखती हैं।