यमुनानगर

103 वर्ष की आयु में भी पूर्णत: स्वस्थ्य है हिन्दी रक्षा आंदोलन के सदस्य यमुनानगर निवासी वैद्य राम लाल,

सच की ध्वनि(ब्यूरो)यमुनानगर, 26 मार्च(  )-यमुनानगर के प्रेम नगर निवासी वैद्य राम लाल 103 वर्ष की आयु का लम्बा सफर तय करने के बावजूद पूर्णत: स्वस्थ्य है। जीवन के इस लम्बे सफर के दौरान वे जहां पिछले 90 वर्ष से अधिक समय से आर्युवैदिक चिकित्सा पद्घति से लोगों की सेवा कर रहे है वहीं 1957 में हिन्दी भाषा की रक्षा के लिए चलाए गए हिन्दी रक्षा आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका अदा की है। हिन्दी भाषा के लिए उनके इस योगदान को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल के  निर्णय के तहत राज्य सरकार द्वारा उन्हें सूचना, जन सम्पर्क एवं भाषा विभाग के माध्यम से 10 हजार रूपये मासिक पैंशन दी जा रही है। वैद्य राम लाल के अतिरिक्त जिला के 9 अन्य राष्ट्रीय भक्तों को भी हिन्दी भाषा की रक्षा के लिए इस आंदोलन में सहयोग करने पर इस पैंशन का लाभ दिया जा रहा है।
वैद्य राम लाल 103 वर्ष की आयु में न केवल अच्छी प्रकार से चलते-फिरते है और अपनी दैनिक क्रिया सामान्य व्यक्ति की तरह करते है बल्कि जिला सूचना एवं जन सम्पर्क अधिकारी कार्यालय में प्रति वर्ष अपना जीवन प्रमाण पत्र देने के लिए भी स्वयं व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होते है। वीरवार 25 मार्च को भी वे इस कार्यालय में पैंशन सम्बंधित औपचारिकताओं के लिए आए और उन्होंने मीडिया सैंटर में उपस्थित पै्रस प्रतिनिधियों के साथ हिन्दी रक्षा आंदोलन से जुड़े  अनेकों सस्मरण सांझा किए। उन्होंने कहा कि 30 अप्रैल 1957 में आरम्भ हुआ हिन्दी आंदोलन 27 दिसम्बर 1957 तक जारी रहा था। इस आंदोलन में हिन्दी भाषा की रक्षा के लिए हरियाणा के अनेकों जागरूक नागरिकों ने अपना सहयोग दिया और आंदोलन के दौरान उन्हें कई बार उनके स्वयं के घर पर व सरकारी विश्राम गृह में नजरबंद भी रखा गया। उन्होंने पैंशन के रूप में हरियाणा सरकार द्वारा दिए जा रहे सम्मान का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने उनके आंदोनल के सहयोग को उचित सम्मान दिया है।
अपने स्वस्थ्य और लम्बी आयु के रहस्य पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जीवनभर उनकी दिनचर्या में सादा भोजन, योग और व्यायाम दिनचर्या का हिस्सा रहे है। उन्होंने कहा कि गाय के दूध से बना देसी घी का प्रयोग भी वह अपने दैनिक भोजन के दौरान करते है। उन्होंने कहा कि भारतीय आर्युवैदिक पद्घति विश्व की सबसे प्राचीन और रोग निवारण में सबसे प्रभावी चिकित्सा पद्घति है। इस पद्घति में प्रयोग होने वाली जड़ी-बूटिया और देसी दवाईयां रोग का स्थायी उपचार करती है और इनका शरीर पर कोई भी दुषप्रभाव नही है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल के दौरान भी आर्युवैदिक नुस्खों से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और भारत ही नहीं पूरे विश्व ने इस पद्घति के प्रभाव को स्वीकार किया है।
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